गीता का सारांश
गीता क्लास से मैंने गुरूजी से कई बाते सीखी जिन्हें अपने जीवन में अपनाने से हमारा जीवन सुखमय बीत सकता हैं | मैंने,धर्म क्या हैं ? इसके बारे में जाना , धर्म – जो करने योग्य कर्म हैं | और धर्म की पलना करने से हमें पुण्य मिलता हैं | अगर हम हमारे साथ घटने वाली प्रत्येक घटना को भगवान का दिया प्रसाद मान ले तो हमें इतना दुःख नहीं होगा | मैंने यह भी जाना की हम लोग “राग” और “द्वेष” के अनुसार हमारा जीवन व्यतीत करते हैं |
राग – जो मुझे चाहिए |
द्वेष – जो मुझे नहीं चाहिए |
इन दो शब्दों पर हम हमारा जीवन बिताते है और यही हमारी ख़ुशी और दुःख का कारण बनता हैं | इसीलिए हमें अपने राग और द्वेष को वश में रखना चाहिए न कि इनके वश में रह कर अपने जीवन में अशांति को आमंत्रित करना चाहिए | मैंने यह भी जाना कि संस्कार क्या हैं ? संस्कार – जो हमारे मन और दिमाग में हैं और जो हमने हमारी संस्कृति से सिखा हैं यही संस्कार कहलाते हैं |
मैंने इस गीता क्लास से सिखा कि –
१.हमें किसी को सलाह देने के बदले उसे खुद अपनी समस्या का हल ढूँढने के लिए प्रेरित करना चाहिए |
२.हमें भावनात्मक रूप मजबूत होना चाहिए ताकि हम किसी भी परिस्थिति में खुश रह सके या कहे कि उस परिस्थिति के नकारात्मक प्रभाव से हमारा जीवन बच सके |
३. धर्म को अर्थ और काम से ऊपर रखना यानि कि अर्थ और काम के लिए अधर्म का सहारा न लेना |हमेशा धर्म का पालन करना हमारा पहला कर्तव्य हैं |
४. हमारा लक्ष्य बढ़ा होना चाहिए | लक्ष्य बड़ा होगा तो छोटी -छोटी समस्याएँ और छोटी हो जाएगी |
५. बुद्धिमानी – अच्छे और बुरे की पहचान कर पाना ही बुद्धिमानी हैं |
६. दुरिता, पाप और अधर्म एक ही हैं | इनसे बचने के लिए हमें प्रार्थना या अच्छे कर्म करने चाहिए |