Unveiling Unseen Places.

लाइफ क्लास की तारीखों का बदलना एक झटका देने वाली खबर दी, खासकर इसलिए कि सारी योजना बदलना मुश्किल था। इस खबर ने सभी को कुछ हद तक निराश किया था। पहले दिन हम डुमस के समर पैलेस नहीं जा सके और पूरा दिन स्कूल में या के. जी. फार्म में बिताया। हालांकि यह अनुभव भी बुरा नहीं था, प्रकृति के साथ समय बिताना हमेशा सुखद एहसास ही देता है। खैर दूसरे दिन की योजना ढोलकिया फार्म हाउस की थी, जो उन्होंने एक दिन पहले तैयारी करके सफल करने में बहुत बड़ा योगदान दिया।

वहाँ पहुँचते ही जिस अपनत्व की भावना से ढ़ोलकिया परिवार ने हमारा स्वागत किया उससे सभी भावविभोर हो गए। हमने देखा कि संयुक्त परिवार की भारतीय संस्कृति और परंपरा को इस परिवार ने कैसे आज भी जीवंत रखा है। जहाँ हम समाज में देख रहे हैं कि पाँच- सात लोग या परिवार के सदस्य मिलजुल कर प्यार से नहीं रह पाते, वहीं इस दो सौ सत्तर लोगों के परिवार में इतना प्यार और अपनापन कहाँ से आया होगा। लेकिन जो सुना था कि एक परिवार ही बच्चे को सही संस्कार देता है, उसे आज आत्मसात होते देखा और समझा। उन्होंने अपने होम थिएटर में कुछ फ़िल्में दिखाते हुए परिवार की बहुत सी परम्पराओं के बारे में जानकारी दी। वे रोज रात में खाना खाने के बाद नियमानुसार परिवार के साथ समय गुजारते हैं। हर सदस्य के जन्मदिन पर वे मिलकर एक समारोह की तरह उन्हें बधाई स्वरुप कुछ कहकर या संगीत और नृत्य के जरिए अभिवादन करते हैं। त्यौहार या किसी भी उत्सव को वे परिवार के साथ एक विशेष तरीके से मनाते हैं। यही नहीं वे समाज सेवा में भी पूरा योगदान देते हैं। जैसे अपने बच्चे के जन्मदिन पर उन्होंने कई कैंसर पीढ़ित बच्चों की आखिरी ख्वाईश पूरी करने के लिए उन्हें शॉपिंग करवाई और हवाईजहाज में सफर करने का अवसर दिया। गोविंद दादा ने अपने गाँव में स्कूल खोले, चिकित्सा की सुविधा दी, सभी घरों में सोलार पैनल लगवाकर बिजली की समस्या दूर की। वहाँ के सभी लोगों को लैपटॉप दिया जिससे वे बाहरी दुनिया से जुड़ पाएँ, यही नहीं वाई फाई की सुविधा भी की। डांग जिले में हनुमान जी के 180 मंदिरों के निर्माण में उनका योगदान है, यही नहीं बल्कि मंदिर बनवाने के साथ उन्होंने वहाँ रहने वाले लोगों की नशे की लत भी छुड़वाई। 

उनके घर में ऐसे कई नियम हैं जो बच्चों में सही संस्कार पैदा करते हैं जैसे उनके घर की लड़कियाँ दो साल के लिए हॉस्टल या अपने किसी रिश्तेदार के घर पर रहने और पढ़ने जाती हैं, जिससे वे अपने घर के अतिरिक्त नए माहौल में ढलने के लिए तैयार होती हैं। वहीं लड़के एक महीने के लिए सिर्फ 5 हजार की रकम और बिना फ़ोन के अपने माता पिता की जानकारी के बगैर एक नए स्थान पर भेज दिए जाते हैं जहाँ वे छोटी मोती नौकरी करके अपने बल पर जीवनयापन करते हैं। उन्हें किसी के सामने अपनी पहचान जाहिर करने की अनुमति नहीं है। तीन हफ्ते में तीन नौकरी और चौथे हफ्ते कोई व्यापार करके जब वे घर लौटते हैं तो प्यार और सम्मान से उनका स्वागत होता है। बच्चों के लिए ऐसे नियम बनाते हुए या उनका पालन करते हुए माता पिता को अपने दिल को कितना कठोर बनाना पड़ता होगा, मैं इसी विचार से भावुक हुए जा रही थी। लेकिन यही कारण था शायद कि परिवार के जितने बच्चे हमारी नजरों के सामने थे उनमे से किसी के चेहरे पर घमंड नहीं था बल्कि जमीन से जुड़े होने का ही भाव था।  मैं ही नहीं, परंतु हम सब भावुक हो रहे थे और कुछ न कुछ सीखने, समझने और अपनाने के बारे में सोच रहे थे। लौटते हुए मन में यही विचार आ रहा था कि इस परिवार में जन्म लेना कितने सौभाग्य की बात है। 

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