Rich Dad Poor Dad- first day reflection.

हमारी शिक्षा प्रणाली हमें धन कमाने के लिए पढ़ने और डिग्री हासिल करके अच्छी नौकरी पाने के लिए प्रोत्साहित करती है। वास्तव में धन को अपने लिए प्रयोग में लाना हमें नहीं सिखाया जाता, यही कारण है कि इंसान बिना सोचे समझे धन पाने की अंधाधुंध दौड़ में फंस कर रह जाता है। ‘Rich Dad Poor Dad’ में लेखक ने अपने दो पिताओं के नजरिए को सुना, समझा और उन दो अलग अलग नजरियों से अपने लिए सही को चुना। उन्होंने बताया कि हारने का डर जीतने की ख़ुशी पर भारी पड़ता है। यही डर और हमारी आकांक्षाएँ हमें धन के सही उपयोग करने से रोकती हैं। उनके अनुसार हमें अपने डर और आकांक्षाओं को अपनी सोच पर हावी नहीं होने देना चाहिए। जिस तरह स्वास्थ्य पाने के लिए शारीरिक व्यायाम की जरुरत है उसी तरह धनवान बनने के लिए मानसिक व्यायाम जरुरी है।
उन्होंने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि नौकरी करना सही है या नहीं ? बहुत सोचने पर मुझे यही लगता है कि जिस काम से आप शांतिपूर्वक जीवन जी सकें वही सही है। पैसा बहुत कुछ है पर सब कुछ नहीं। लेखक का कहना बिलकुल सही है, ‘ Don’t work for money, let money work for you.’

यहाँ उन्होंने सम्पति और दायित्व (जिम्मेदारी ) के अंतर को भी स्पष्ट किया है। इंसान को बहुत सोच विचार कर अपने धन को सही जगह निवेश करना चाहिए।

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