“भगवद गीता”- जीवन के प्रति देखने का नया दृष्टिकोण

इस बार life Class में भगवद गीता है !! जिस महाभारत को बचपन से जाना था उसे अधिक जानने का एक और मौका मिलेगा , इसी उत्सुकता के साथ “भगवद गीता” का चुनाव मैंने  किया | अब भगवद गीता की किताब मिलेगी और सभी अध्यायों  का परिचय होगा ऐसी मेरी सोच थी लेकिन पहले दो क्लास अनुपस्थीत  रहने के कारण पता चला ,”इसमें भगवद गीता नहीं मिलेगी , ना ही सभी अध्यायों का परिचय होगा |” 

*मुझे प्रभावित करनेवाले विचार  

“हम दूसरों से दुःखी हो जाते हैं , हमें अपने आप से  खुश रहना आना चाहिए |”

-दूसरे इंसान की प्रगति , संपत्ति से हमारे मन में इर्षा उत्पन्न होती है और हम अपने आप को कोसते हुए दुखी बनाते है |

– गुस्से पर काबु करना बहुत जरूरी इससे हम अपने आप को सज़ा देते है |

 

समस्या – हमारे जीवन में समस्या हैं और हमें समस्या सुलझाने का हल नहीं मिल रहा हैं  क्योंकि हमारा लक्ष्य हमारी Expectation अपने आप से कुछ ज्यादा ही है|

गुरूजी  ने एक बात बहुत अच्छे से बताई “भगवद गीता याने आपके दुखों का हल नहीं हैं लेकिन खुदको मदद करने वाला  हमसफ़र जरूर हैं |”

 

“कर्मण्येवाधिकरस्ते    मा  फलेषु कदाचन”- कर्म करते रहो फल मिलेगा |

हमें अपने जीवन में अनेक कर्तव्यों का पालन करना जरूरी होता हैं – अपने परिवार के सदस्यों  का पालन- पोषण  , हमारे काम ( अर्थ प्राप्ति ) के प्रति निष्ठा , समाज और देश के प्रति कर्तव्य | इन कर्तव्यों का पालन करते समय हो सकता है कभी हमें उचित यश न मिले , नौकरी में तरक्की न मिले , बच्चे सही राह पर न जाए … और अनेक कारणों से हमें दुःखी नहीं होना है , ना ही अपने आप को दोष देना है | इसके लिए आसान सूत्र हैं-

“अपने लक्ष्य को विस्तृत रखों  समस्या अपने आप छोटी हो जाएगी|  “

धर्म की सही व्याख्या / परिभाषा  –

इस Class  से पहले मेरे मन में धर्म यानि “Religion / Cast” ऐसा ही विचार था | मैंने बचपन से समाज में धर्म का यही मतलब देखा था | “हमारा धर्म ऐसा नहीं कहता, हमारे धर्म  ख़िलाफ़ हैं , इन्होंने हमारा धर्म बिगाड़ा |”  हम पाप और पुण्य को ही धर्म के साथ जोड़ते थे | आज पहली बार धर्म याने

“ क्या सही , क्या गलत , क्या उचित और क्या अनुचित ये जानना , उसका आचरण करना याने धर्म |” हमेशा कितनी भी कठिनाई आए  सही रस्ते से ही मंजिल अपनानी है , गलत रस्ते से यश मिलेगा भी लेकिन वह धर्म से पाया हुआ नहीं होगा |

मैं मेरा अनुभव बताना चाहूँगी मेरे पति हमेशा गाड़ी चलाते समय सीट बेल्ट बाँधते हैं , No Parking जगह पर कभी भी गाड़ी नहीं रखते , Wrong side से कुछ भी हो जाएँ गाड़ी नहीं ही चलाएँगे ,हमेशा गाड़ी के कागज़ाद साथ रखते हैं with PUC . आज मुझे उनके प्रति बहुत ही गर्व महसूस होता है |

मुझे लगता हैं इस धर्म पालन अगर होगा तो पूरे विश्व में शांति बरकरार रहेगी | मनुष्य में “राग ,लोभ ,इर्षा , द्वेष” लुप्त होकर प्रेम ही प्रेम रहेगा ,महिलाओं पर अत्याचार नही होंगे , भ्रष्टाचार नही होंगे , जाती – धर्म के नाम पर कर्म कांड नही होंगे |

हाँ लेकिन इसके लिए दूसरे क्या कर रहे है ? के बदले मैं धर्म के राह पर चल रहा / रही हूँ ना , ये जरूरी है |

प्रसाद

हमारे देश में “प्रसाद “को अनन्य साधारण महत्त्व है , वो प्रसाद कैसा भी हो हम उसे निष्ठा के साथ ग्रहण करते है | इस प्रसाद से हमें सकारात्मक दृष्टिकोण मिलता है |इस ही दूसरे तरीके से देखा जाए तो जो कर्म हम कर रहे है, उसका  हमेशा हमे अच्छा ही फल मिले जरूरी नही हैं, हमें “प्रसाद “की  तरह उसे सच्चे मन से स्वीकारना होगा |हमें संयम से काम चलाना होगा |

 

संकल्प –

 

अपना  लक्ष्य को पाने के लिए मैं “धर्म” की ही राह चलूँगी | मेरी बेटी भी हमसे यही सीखेगी |

 

मुझे अपने आप पर प्रेम करना है “स्व” को खुश रखना है |

 

जय गुरुदेव !!

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